Bhaiya Dooj: भैयादूज – यम द्वितीया क्यों मानते हैं ?
Bhaiya Dooj: हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया ‘यम द्वितीया’ या ‘भैयादूज’ कहलाती है। इस दिन यमुना-स्नान, यम-पूजन और बहन के घर भाई का भोजन विहित है और शास्त्रीय मत के अनुसार मृत्यु देवता यमराज की पूजा होती है।
यम द्वितीया (Bhaiya Dooj ) कथा :-
एकदा भगवान् यमराज: आत्मन: स्वसा यमुनाया: गृहं गतवान् । तत्र यमुना देवी तस्य अतिसेवा: सुश्रूषा: सम्पादितवती ।
यम: प्रसन्न: जात: वरं व़णीतुं च उक्तवान् । यमुनादेवी वरं याचितवती भगवन । यदि भवान् प्रसन्न: चेत् कृपया एतत् वरं ददातु यत् अद्यतनीये दिवसे य: कश्चिदपि मम जले स्नानं कुर्यात् स: भवत: यमपाशे न पतेत । पुनश्च अस्मिन् दिवसे य: कश्चित् अपि आत्मन: स्वसार: गृहे गत्वा भोजनादिकं कुर्यात् स: अपि सर्वदा सुखी भवेत् । यम: ताम् अभीष्टं वरं प्रदाय स्वलोकं प्रति गतवान् । तदा आरभ्य एष: उत्सव: जनै: आयोज्यते । भगिन्य: भ्रातृणां कृते व्रतं धारयन्ति । भ्रातर: भगिनीनाम् आदरं सम्पादयन्ति । द्वौ अपि मिलित्वा प्रत्येकस्य दीर्घजीवनस्य शुभकामना: च याचेते ।
अर्थात् :-
यम और यमुना भगवान् सूर्य की संतान हैं। दोनों भाई-बहनों में अतिशय प्रेम था। परंतु यमराज यमलोक की शासन-व्यवस्था में इतने व्यस्त रहते कि यमुना जी के घर ही न जा पाते।
एक बार यमुना जी यम से मिलने आयीं। बहन को आया देख यमदेव बहुत प्रसन्न हुए और बोले-बहन! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, तुम मुझसे जो भी वरदान माँगना चाहो, माँग लो।
यमुना ने कहा-भैया! आजके दिन जो यमुना में स्नान करे, उसे यमलोक न जाना पड़े। यमराज ने कहा-बहन! ऐसा ही होगा। उस दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया थी।
इसीलिये इस तिथिको यमुना स्नान का विशेष महत्त्व है। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को यमुना ने अपने घर अपने भाई यमको भोजन कराया और यमलोक में बड़ा उत्सव हुआ, इसलिये इस तिथिका नाम ‘यमद्वितीया‘ ( Bhaiya Dooj ) है।
शास्त्रीय मत के अनुसार आज के दिन व्रती बहनों को प्रातः स्नानादि के अनन्तर गणेश, यम, यमुना तथा चित्रगुप्त की पूजन करनी चाहिये।
निम्न मन्त्र से यमराज की प्रार्थना करनी चाहिये
धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्के यमुनाग्रज।
पाहि मां किङ्करैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते॥
निम्न मन्त्र से यमुना जी की प्रार्थना करे
यमस्वसनमस्तेऽस्तु यमुने लोकपूजिते।
वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते॥
अत: इस दिन बहन को चाहिये कि वह भाई को एक शुभ आसनपर बैठाकर उसके हाथ-पैर धुलाये। गन्धादि से उसका पूजन करे और विभिन्न प्रकारके उत्तम व्यञ्जन परोसकर उसका अभिनन्दन करे।
इसके बाद भाई बहन को यथासामर्थ्य अन्न-वस्त्र आभूषणादि देकर उसका शुभाशिष प्राप्त करे। इस व्रत से भाई की आयुवृद्धि और बहन को सौभाग्य सुख की प्राप्ति होती है।
भारतीय संस्कृति में बहन दया की मूर्ति मानी गयी है। अतः शुभाशीर्वादपूर्वक उसके हाथ से भोजन करना आयुवर्धक तथा आरोग्य कारक है।
जो पुरुष यमद्वितीया को बहनके हाथका भोजन करता है, उसे धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ और अपरिमित सुखकी प्राप्ति होती है। शुद्ध प्रेम के प्रतीक इस उत्सव को बड़े प्रेम से मनाना चाहिये।
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