काल भैरवाष्टमी – जानिए क्या है काल भैरव की कथा
काल भैरवाष्टमी: शिवपुराण के अनुसार: मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को परमेश्वर सदाशिवने भैरवरूप में अवतार लिया।
इस आविर्भाव की तिथि भैरवाष्टमी कहलाती है। भगवान शिव का भैरवस्वरूप अत्यन्त रौद्र, भयानक, विकराल तथा प्रचण्ड है।
भैरवः पूर्णरूपो हि शङ्करस्य परात्मनः।
मुढास्तं वै न जानन्ति मोहिताश्शिवमायया॥
व्रत-विधि
इस दिन प्रात:काल उठकर नित्यकर्म एवं स्नान से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करना चाहिये तथा भैरव जी के मन्दिर में जाकर उनकी पूजा करनी चाहिये।
‘ॐ भैरवाय नमः’ इस नाममन्त्रसे षोडशोपचार पूर्वक पूजन करना चाहिये। भैरवजी का वाहन कुत्ता है, अतः इस दिन कुत्तों को मिष्टान्न खिलाना चाहिये।
इस दिन उपवास एवं जागरण करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। शनिवार के रात्रिकाल में जो मनुष्य कालभैरवरूप की पूजा करता है शनि के प्रकोप से मुक्ति प्राप्त होती है।
साढेसाती में कालभैरव की पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होता है
काल भैरव को उनके मंदिर में सरसों का तेल व सिन्दूर चढ़ाया जाता है | काल भैरव की उपासना में रविवार का दिन अति शुभ माना गया है |
इसके अतिरिक्त उनकी उपासना शनिवार के दिन भी की जा सकती है | काल भैरव मंत्र साधना व उनके विशेष पूजा-पाठ को रात्रि में संपन्न करने का विधान है |
शत्रु बाधा से मुक्ति व अच्छे स्वास्थ्य के लिए सरसों के तेल का दीया जलाने की पंरपरा है तो वहीं अपने मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि की इच्छा करने वाले चमेली के तेल का दीया जलाते हैं.
मार्गशीर्षसिताष्टम्यां कालभैरवसन्निधौ।
उपोष्य जागरं कुर्वन् सर्वपापैः प्रमुच्यते॥
भैरव जी का पूजन कर उन्हें निम्न मन्त्रों से अर्घ्य देना चाहिये
भैरवार्घ्यं गृहाणेश भीमरूपाव्ययानघ ।
अनेनार्घ्यप्रदानेन तुष्टो भव शिवप्रिय ॥
सहस्राक्षिशिरोबाहो सहस्रचरणाजर ।
गृहाणाऱ्या भैरवेदं सपुष्पं परमेश्वर ।।
पुष्पाञ्जलिं गृहाणेश वरदो भव भैरव ।
पुनरर्थ्यं गृहाणेदं सपुष्पं यातनापह ॥
काल भैरव की कथा
स्कंद पुराण के अनुसार चारों वेदों के रचियता ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना करने का फैसला किया तो परेशान देवता उन्हें रोकने के लिए महादेव की शरण में गए |
उनका मानना था कि सृष्टि के लिए पांचवे वेद की रचना ठीक नहीं है लेकिन ब्रह्मा जी ने महादेव की भी बात नहीं मानी |
कहते हैं इस बात पर शिव क्रोधित हो गए | गुस्से के कारण उनके तीसरे नेत्र से एक ज्वाला प्रकट हुई | इस ज्योति ने कालभैरव काले कुत्ते पर सवार होकर हाथों में दंड लिये अवतरित हुए ,कालभैरव ने रौद्ररूप धारण किया, और ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को धड़ से अलग कर दिया |
कालभैरव ने ब्रह्माजी का घमंड तो दूर कर दिया लेकिन उन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया | इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भैरव दर दर भटके लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली | फिर उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना की |
शिव ने उन्हें शिप्रा नदी में स्नान कर तपस्या करने को कहा | ऐसा करने पर कालभैरव को दोष से मुक्ति मिली और वो सदा के लिए उज्जैन में ही विराजमान हो गए |
उज्जैन शहर से आठ किलोमीटर दूर कालभैरव के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई उज्जैन आकर महाकाल के दर्शन करे और कालभैरव न आए तो उसे महाकाल के दर्शन का आधा लाभ ही मिलता है |
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, कालभैरव को ये वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी |
बाबा काल भैरव के भक्तों के लिए उज्जैन का भैरो मंदिर किसी धाम से कम नहीं | सदियों पुराने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके दर्शन के बिना महाकाल की पूजा भी अधूरी मानी जाती है |
अघोरी जहां अपने इष्टदेव की आराधना के लिए साल भर कालाष्टमी का इंतजार करते हैं वहीं आम भक्त भी कालाष्टमी के दिन कालभैरव का आशीर्वाद पाना नहीं भूलते|
काल-भैरव की पूजा का काशीनगरी में विशेष महत्त्व है। भैरव जी काशी के कोतवाल (नगररक्षक) हैं। काशी में भैरवजी के अनेक मन्दिर हैं। जैसे-कालभैरव मन्दिर, बटुकभैरव मन्दिर, आनन्दभैरव मन्दिर आदि।
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